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शेर
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हक़ीक़त छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से
कि ख़ुशबू आ नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तरक़्क़ी
शेर
मोहब्बत को छुपाए लाख कोई छुप नहीं सकती
ये वो अफ़्साना है जो बे-कहे मशहूर होता है
लाला माधव राम जौहर
शेर
न इतना ज़ुल्म कर ऐ चाँदनी बहर-ए-ख़ुदा छुप जा
तुझे देखे से याद आता है मुझ को माहताब अपना
नज़ीर अकबराबादी
शेर
इक मंज़र में इक धुँदले से अक्स में छुप के रो लें
हम किस ख़्वाब में आँखें मूँदें किस में आँखें खोलें
अम्बरीन सलाहुद्दीन
शेर
छुप गया ईद का चाँद निकल कर देर हुई पर जाने क्यों
नज़रें अब तक टिकी हुई हैं मस्जिद के मीनारों पर
शायर जमाली
शेर
जगाने चुटकियाँ लेने सताने कौन आता है
ये छुप कर ख़्वाब में अल्लाह जाने कौन आता है