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शेर
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में
अल्लामा इक़बाल
शेर
पा के इक तेरा तबस्सुम मुस्कुराई काएनात
झूम उट्ठा वो भी दिल जीने से जो बेज़ार था
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
हम हैं का'बा हम हैं बुत-ख़ाना हमीं हैं काएनात
हो सके तो ख़ुद को भी इक बार सज्दा कीजिए