aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گاجر"
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँबाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैंतेरी रहमत के सहारे ने गुनहगार किया
एक बोसे के तलबगार हैं हमऔर माँगें तो गुनहगार हैं हम
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वालेतमांचे मौज के खाते थे जो बन कर गुहर निकले
अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझेथा नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा परपहले वो मुझे अपना गुनहगार तो कर ले
कौन सा जुर्म ख़ुदा जाने हुआ है साबितमशवरे करता है मुंसिफ़ जो गुनहगार के साथ
गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सकाजो बे-गुनाह था वो भी नज़र मिला न सका
कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूमकह दिया तू ने गुनहगार गुनहगार हैं हम
अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर देगुनाहगार-ए-नज़र को हिजाब आता है
किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझेकिस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है
गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिदयहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है
'मजरूह' लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नामहम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिनआज तक ये न खुला किस के तलबगार हैं हम
दुनिया ओ आख़िरत में तलबगार हैं तिरेहासिल तुझे समझते हैं दोनों जहाँ में हम
अहल-ए-जन्नत मुझे लेते हैं न दोज़ख़ वालेकिस जगह जा के तुम्हारा ये गुनहगार रहे
हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं नेजी सारे ज़माने के गुनहगार हमीं थे
हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्तेआख़िर गुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं
मुझ गुनहगार को जो बख़्श दियातो जहन्नम को क्या दिया तू ने
अच्छा हुआ मैं वक़्त के मेहवर से कट गयाक़तरा गुहर बना जो समुंदर से कट गया
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