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शेर
चाहत के बदले में हम बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो
अंदलीब शादानी
शेर
मिरी क़ीमत को सुनते हैं तो गाहक लौट जाते हैं
बहुत कमयाब हो जो शय वो होती है गिराँ अक्सर
नश्तर ख़ानक़ाही
शेर
इस हिर्स-ओ-हवस के मेले में हम जिंस-ए-मोहब्बत लाए हैं
सब सस्ते माल के गाहक हैं ये महँगा सौदा कौन करे
इज्तिबा रिज़वी
शेर
कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख
गाहक जो रीझ जाए तो क़ीमत फ़ुज़ूँ करूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दस्त-ए-पुर-ख़ूँ को कफ़-ए-दस्त-ए-निगाराँ समझे
क़त्ल-गह थी जिसे हम महफ़िल-ए-याराँ समझे
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
है तमाशा-गाह-ए-सोज़-ए-ताज़ा हर यक उज़्व-ए-तन
जूँ चराग़ान-ए-दिवाली सफ़-ब-सफ़ जलता हूँ मैं