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शेर
हम गबरू हम मुसलमाँ हम जम्अ हम परेशाँ
इक सिलसिला बंधा उस ज़ुल्फ़-ए-दोता से देखा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
सिलसिला गबरू मुसलमाँ की अदावत का मिटा
ऐ परी बे-पर्दा हो कर सुब्हा-ए-ज़ुन्नार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
कैसे भूले हुए हैं गब्र ओ मुसलमाँ दोनों
दैर में बुत है न काबे में ख़ुदा रक्खा है
लाला माधव राम जौहर
शेर
अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं
प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
शेर
पंडित विद्या रतन आसी
शेर
काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल
हर सहर उठ के रुख़-ए-गब्र-ओ-मुसलमाँ देखूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मुल्हिद हूँ अगर मैं तो भला इस से तुम्हें क्या
मुँह से ये सुख़न गब्र ओ मुसलमाँ न निकालो