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शेर
जो दीवानों ने पैमाइश की है मैदान-ए-क़यामत की
फ़क़त दो गज़ ज़मीं ठहरी वो मेरे दश्त-ए-वहशत की
हफ़ीज़ जौनपुरी
शेर
गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
वगर्ना हिर्स आगे थान सौ गज़ का लंगोटी है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है