aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گناہ"
कोई समझे तो एक बात कहूँइश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैंकितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैरजैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के
इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हमकुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास
इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाहबख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमतकरीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँसुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं
भूल जाना नहीं गुनाह उसेयाद करना उसे सवाब नहीं
फ़रिश्ते हश्र में पूछेंगे पाक-बाज़ों सेगुनाह क्यूँ न किए क्या ख़ुदा ग़फ़ूर न था
गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सकाजो बे-गुनाह था वो भी नज़र मिला न सका
सज़ा के झेलने वाले ये सोचना है गुनाहकोई क़ुसूर भी तुझ से कभी हुआ कि नहीं
शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब कीतौबा के साथ तोड़िए बोतल शराब की
अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर देगुनाहगार-ए-नज़र को हिजाब आता है
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सतहमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है
गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिदयहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है
वो जो रात मुझ को बड़े अदब से सलाम कर के चला गयाउसे क्या ख़बर मिरे दिल में भी कभी आरज़ू-ए-गुनाह थी
रहमतों से निबाह में गुज़रीउम्र सारी गुनाह में गुज़री
हवस ने तोड़ दी बरसों की साधना मेरीगुनाह क्या है ये जाना मगर गुनाह के बअ'द
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह होमुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो
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