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शेर
अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
हयात लखनवी
शेर
वैसे तो ईमान है मेरा उन बाँहों की गुंजाइश पर
देखना ये है उस कश्ती में कितना दरिया आ जाता है
अज़हर फ़राग़
शेर
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
तंग इतना है कि गुंजाइश-ए-ता'मीर नहीं
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है
औरत अपना आप गँवाए तब भी मुजरिम होती है