aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گنگ"
है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाशऔर हर इक बरहमन गंग-ओ-जमन में मस्त है
बुत भी न भूलें याद ख़ुदा की भी कीजिएपढ़िए नमाज़ कर के वुज़ू आब-ए-गंग से
क्या ज़रूरी है जू-ए-शीर की बातक्यूँ न गंग-ओ-जमन की बात करें
इतना दिल-ए-'नईम' को वीराँ न कर हिजाज़रोएगी मौज-ए-गंग जो उस तक ख़बर गई
गुंग हैं जिन को ख़मोशी का मज़ा होता हैदहन-ए-ज़ख़्म में ख़ुद क़ुफ़्ल-ए-हया होता है
तीरथ समझ उस को वो गर अश्नान को आवेअश्कों ने बहाए हैं मिरे गंग ज़मीं पर
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसरदिन गिने जाते थे इस दिन के लिए
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस मेंबंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते
रहते थे कभी जिन के दिल में हम जान से भी प्यारों की तरहबैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनहगारों की तरह
तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैंतेरी रहमत के सहारे ने गुनहगार किया
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार यादमुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
एक बोसे के तलबगार हैं हमऔर माँगें तो गुनहगार हैं हम
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँसुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं
अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझेथा नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था
ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँवो दिन जो हम ने तिरे हिज्र में गुज़ारे थे
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा परपहले वो मुझे अपना गुनहगार तो कर ले
कौन सा जुर्म ख़ुदा जाने हुआ है साबितमशवरे करता है मुंसिफ़ जो गुनहगार के साथ
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिएइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूमकह दिया तू ने गुनहगार गुनहगार हैं हम
पूछेगा जो ख़ुदा तो ये कह देंगे हश्र मेंहाँ हाँ गुनह किया तिरी रहमत के ज़ोर पर
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books