aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گھاؤ"
तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल मेंआसमाँ के बदन पर कोई घाव है
बड़े सलीक़े से दुनिया ने मेरे दिल को दिएवो घाव जिन में था सच्चाइयों का चरका भी
छुरी का तीर का तलवार का तो घाव भरालगा जो ज़ख़्म ज़बाँ का रहा हमेशा हरा
एक ज़रा सी भूल पे हम को इतना तू बदनाम न करहम ने अपने घाव छुपा कर तेरे काज सँवारे हैं
कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तकमिला है घाव ये दरिया को रास्ता दे कर
शाम उतरी है फिर अहाते मेंजिस्म पर रौशनी के घाव लिए
चिंगारियाँ न डाल मिरे दिल के घाव मेंमैं ख़ुद ही जल रहा हूँ ग़मों के अलाव में
उस की तस्वीर में ख़ूँ-रेज़ी के सब चाव निकालऐ मुसव्विर मिरी गर्दन पे कई घाव निकाल
मुद्दतों घाव किए जिस के बदन पर हम नेवक़्त आया तो उसी ख़्वाब को तलवार किया
सारे तो नहीं जान बचाने में लगे हैंकुछ घाव हमें ज़ख़्म लगाने में लगे हैं
ये आस बहुत है कि तिरे दस्त सितम सेजितने भी मिले घाव हैं भर जाएँगे इक दिन
बहुत से घाव हैं दिल पर तुम्हारी ना-रवाई केकि सीना ख़ुद से है इन को चलो हम मान लेते हैं
घास में जज़्ब हुए होंगे ज़मीं के आँसूपाँव रखता हूँ तो हल्की सी नमी लगती है
ख़ुदा से ले लिया जन्नत का व'अदेये ज़ाहिद तो बड़े ही घाग निकले
अपना कंगन समझ रहे हो क्याऔर कितना घुमाओगे मुझ को
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा हैजैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी होया बनारस में जहाँ हर घाट पर सैलाब है
'दाग़' के शेर जवानी में भले लगते हैं'मीर' की कोई ग़ज़ल गाओ कि कुछ चैन पड़े
चलने की नहीं आज कोई घात किसी कीसुनने के नहीं वस्ल में हम बात किसी की
फ़ज़ा-ए-दिल पे कहीं छा न जाए यास का रंगकहाँ हो तुम कि बदलने लगा है घास का रंग
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