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शेर
हमारा 'मीर'-जी से मुत्तफ़िक़ होना है ना-मुम्किन
उठाना है जो पत्थर इश्क़ का तो हल्का भारी क्या
निदा फ़ाज़ली
शेर
तुम्हारे वस्ल का जिस दिन कोई इम्कान होता है
मैं उस दिन रोज़ा रखता हूँ बुराई छोड़ देता हूँ
अहमद कमाल परवाज़ी
शेर
दिए मुंडेर प रख आते हैं हम हर शाम न जाने क्यूँ
शायद उस के लौट आने का कुछ इम्कान अभी बाक़ी है
ऐतबार साजिद
शेर
फ़िक्र तेरी ठीक पर मेरी अना का भी तो सोच
दूर से बस देख ले ज़ख़्मों को मेरे छू नहीं