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शेर
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
मज़े में अब तलक बैठा मैं अपने होंठ चाटूँ हूँ
लिया था ख़्वाब में बोसा जो यक शब सेब-ए-ग़बग़ब का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
ताब-ए-यक-लहज़ा कहाँ हुस्न-ए-जुनूँ-ख़ेज़ के पेश
साँस लेने से तवज्जोह में ख़लल पड़ता है
इरफ़ान सत्तार
शेर
है तमाशा-गाह-ए-सोज़-ए-ताज़ा हर यक उज़्व-ए-तन
जूँ चराग़ान-ए-दिवाली सफ़-ब-सफ़ जलता हूँ मैं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे का है
चाँद सी सूरत दुपट्टा सर पे यक-तारे का है