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शेर
कलीम आजिज़
शेर
अक़्ल-ए-इंसाँ ने बिठा रक्खे हैं पहरे दिल पर
दिल की क्या बात कहेगा जो न दीवाना बने
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
बेदाद-ए-मुक़द्दर से दिल मेरा उलझता है
जब आप नज़र मुझ पर कुछ लुत्फ़ से करते हैं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल
संग-ओ-शीशे को किया है मैं हुनर से पैवंद
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
अदम की जो हक़ीक़त है वो पूछो अहल-ए-हस्ती से
मुसाफ़िर को तो मंज़िल का पता मंज़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
शेर
शम्अ के मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़
अक्सर अपनी आग में चुप चाप जल जाते हैं लोग
हिमायत अली शाएर
शेर
जो अहल-ए-दिल हैं अलग हैं वो अहल-ए-ज़ाहिर से
न मैं हूँ शैख़ की जानिब न बरहमन की तरफ़
नज़्म तबातबाई
शेर
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में फिरता है तिरे शाना ख़राब