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शेर
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
कुछ छोटे छोटे दुख अपने कुछ दुख अपने अज़ीज़ों के
इन से ही जीवन बनता है सो जीवन बन जाएगा
जमीलुद्दीन आली
शेर
लिया मैं बोसा ब-ज़ोर उस सिपाही-ज़ादे का
अज़ीज़ो अब भी मिरी कुछ दिलावरी देखी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अज़ीज़ो ज़िंदगी की तल्ख़ियों से मैं तो बाज़ आया
रफ़ीक़ो और जीने की दुआ से चोट लगती है
शाद फ़िदाई देहलवी
शेर
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं
बशीर बद्र
शेर
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
रोना ख़ुद अपने हाल पे ये ज़ार ज़ार क्या