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शेर
आजिज़ मातवी
शेर
हर तरफ़ ख़ूनीं भँवर हर सम्त चीख़ों के अज़ाब
मौज-ए-गुल भी अब के दोज़ख़ की हवा से कम न थी
ख़याल अमरोहवी
शेर
आरिज़-ए-नाज़ुक पे उन के रंग सा कुछ आ गया
इन गुलों को छेड़ कर हम ने गुलिस्ताँ कर दिया
असग़र गोंडवी
शेर
उसे देखने की थी आरज़ू मुझे उस की थी बड़ी जुस्तुजू
मगर उस के आरिज़-ए-नाज़ पे मिरी हर निगाह फिसल गई
अतीक़ अंज़र
शेर
अहमद हुसैन माइल
शेर
जो हर्फ़-ए-हक़ की हिमायत में हो वो गुम-नामी
हज़ार वज़्अ के नाम-ओ-निशाँ से अच्छी है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शेर
हर इक से पूछते फिरते हैं तेरे ख़ाना-ब-दोश
अज़ाब-ए-दर-ब-दरी किस के घर में रक्खा जाए