aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "इतराती"
इस सीना-ए-वीराँ में खिलाए न कभी फूलक्यों बाग़ पे इतराती रही बाद-ए-सबा है
क्यूँ न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवाफूल जैसे इक बदन को छू कर आई थी हवा
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता हैभूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
चाहोगे तो क्या है न निबाहोगे तो क्या है बहुत इतराओ न दिल दे के ये किस काम का दिलहै ग़म-ओ-अंदोह का मारा अभी चाहूँ तो मैं रख दूँ इसे तलवों से मसल कर अभी मुँह
रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँवचलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो
शदीद धूप में सारे दरख़्त सूख गएबस इक दुआ का शजर था जो बे-समर न हुआ
उदासी शाम तन्हाई कसक यादों की बेचैनीमुझे सब सौंप कर सूरज उतर जाता है पानी में
हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतरातावगरना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है
कोई आवाज़ न आहट न कोई हलचल हैऐसी ख़ामोशी से गुज़रे तो गुज़र जाएँगे
कोई मिला ही नहीं जिस से हाल-ए-दिल कहतेमिला तो रह गए लफ़्ज़ों के इंतिख़ाब में हम
अपनी मुट्ठी में छुपा कर किसी जुगनू की तरहहम तिरे नाम को चुपके से पढ़ा करते हैं
हिज्र की रात और पूरा चाँदकिस क़दर है ये एहतिमाम ग़लत
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं नेअपने होने की ख़बर सब से छुपा ली मैं ने
इश्क़ में फ़िक्र तो दीवाना बना देती हैप्यार को अक़्ल नहीं दिल की पनाहों में रखो
ठीक है जाओ तअ'ल्लुक़ न रखेंगे हम भीतुम भी वा'दा करो अब याद नहीं आओगे
मोहब्बत आप ही मंज़िल है अपनीन जाने हुस्न क्यूँ इतरा रहा है
अभी तो चाक पे जारी है रक़्स मिट्टी काअभी कुम्हार की निय्यत बदल भी सकती है
बा'द मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींदख़ाक जब ओढ़ ली जब ख़ाक बिछा ली मैं ने
जब भी फ़ुर्सत मिली हंगामा-ए-दुनिया से मुझेमेरी तन्हाई को बस तेरा पता याद आया
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