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शेर
किस के बदन की नर्मियाँ हाथों को गुदगुदा गईं
दश्त-ए-फ़िराक़-ए-यार को पहलू-ए-यार कर दिया
आतिफ़ वहीद यासिर
शेर
बहुत बदला मज़ाक़-ए-दिल ख़याल-ए-यार ने लेकिन
जो शायान-ए-मज़ाक़-ए-यार था ऐसा कहाँ बदला
अब्दुल हई आरफ़ी
शेर
सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी
मुझे डर है न तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए