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शेर
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
जलील ’आली’
शेर
क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है
जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
शेर
हमेशा ख़ून-ए-दिल रोया हूँ मैं लेकिन सलीक़े से
न क़तरा आस्तीं पर है न धब्बा जैब ओ दामन पर