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शेर
वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में
इक तिरे आने से पहले इक तिरे जाने के बाद
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
रख दिलेराना क़दम ता तुझ को हो इमदाद-ए-दाद
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
शेर
जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रक्खा है कि मैं
मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं