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शेर
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
कुछ न दो हाथ से पर मुँह से मिरी दाद तो दो
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
है तुझ कूँ अगर शुबह तो कस देख तपा देख
सिराज औरंगाबादी
शेर
फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
साक़ी तिरे हाथों से जो साग़र नहीं मिलता
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
अफ़ीफ़ सिराज
शेर
जावेद वशिष्ट
शेर
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर