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शेर
दिल से दूर हुए जाते हैं ग़ालिब के कलकत्ते वाले
गुवाहाटी में देखे हम ने ऐसे ऐसे चेहरे वाले
मज़हर इमाम
शेर
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
शेर
मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना
कहीं से तुम बयाँ करते कहीं से हम बयाँ करते
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
कुछ दोस्त से उम्मीद न अंदेशा-ए-दुश्मन
होगा वही जो कुछ मिरी क़िस्मत में लिखा है
सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
शेर
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़
वर्ना मैं भी जानता हूँ आफ़ियत साहिल में है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से
उन को अंदेशा कि ये भी कोई फ़रियाद न हो