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शेर
उम्र सय्याद की गुज़री इसी जासूसी में
गुल को नामा न करे मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार-ए-रवाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दिल सदा तड़पे है मेरा मुर्ग़-ए-बिस्मिल की तरह
या कि सीखी मुर्ग़-ए-बिस्मिल ने मिरे दिल की तरह
राय सरब सुख दिवाना
शेर
हो जाती है हवा क़फ़स-ए-तन से छट के रूह
क्या सैद भागता है रिहा हो के दाम से
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
हाए 'तालिब' देखने को उस की सूरत के लिए
मुर्ग़-ए-दिल तड़पे है कैसा उड़ के मिलना चाहिए
मेजर जूलियन फेलिज़ तालिब
शेर
हम-सफ़ीरों से सबा कहियो कि तुम में भी कभी
एक दिन था ये गिरफ़्तार-ए-बला ज़मज़मा-संज
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा
गिरफ़्तार-ए-क़फ़स पर या गिरफ़्तार-ए-नशेमन पर
यगाना चंगेज़ी
शेर
मुद्दतें क़ैद में गुज़रीं मगर अब तक सय्याद
हम असीरान-ए-क़फ़स ताज़ा गिरफ़्तार से हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
सब हम-सफ़ीर छोड़ के तन्हा चले गए
कुंज-ए-क़फ़स में मुझ को गिरफ़्तार देख कर