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शेर
सभी रिश्ते गुलाबों की तरह ख़ुशबू नहीं देते
कुछ ऐसे भी तो होते हैं जो काँटे छोड़ जाते हैं
वसीम बरेलवी
शेर
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
शेर
यूँही तो नहीं दश्त में पहुँचे यूँही तो नहीं जोग लिया
बस्ती बस्ती काँटे देखे जंगल जंगल फूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
शेर
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
जोश मलीहाबादी
शेर
काँटे बोने वाले सच-मुच तू भी कितना भोला है
जैसे राही रुक जाएँगे तेरे काँटे बोने से
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
शेर
काटे हैं हम ने यूँही अय्याम ज़िंदगी के
सीधे से सीधे-सादे और कज से कज रहे हैं