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शेर
हफ़्ते में हैं दिन सात मगर सात दिनों में
सिर्फ़ एक ही इतवार है मालूम नहीं क्यूँ
किशन लाल ख़न्दां देहलवी
शेर
जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रक्खा है कि मैं
मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं
बशर नवाज़
शेर
दिल में जब से देखता है वो तिरी तस्वीर को
नूर बरसाता है अपनी चश्म-ए-तर से आफ़्ताब
महाराजा सर किशन परसाद शाद
शेर
मैं किन आँखों से ये देखूँ कि साया साथ हो तेरे
मुझे चलने दे आगे या टुक उस को पेशतर ले जा