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शेर
नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
शेर
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया
अब्दुल हमीद अदम
शेर
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
शेर
किसी के अक़्द में रहती नहीं है लूली-ए-दहर
ये क़हबा रोज़-ए-अज़ल से है कुछ तलाक़-नसीब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
रोज़-ए-अज़ल से आप की मेरी कैसी रस्म-ओ-राह निभी
अव्वल अव्वल हम हुए शैदा आख़िर शैदा आप हुए
इज्तिबा रिज़वी
शेर
सहर-ए-अज़ल को जो दी गई वही आज तक है मुसाफ़िरी
ऐ तय करें तो पता चले कहाँ कौन किस की तलब में है
मुख़्तार सिद्दीक़ी
शेर
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
क्या ख़ाक लिखा उम्र की ता'मीर का नक़्शा