aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कूच-ए-मौज"
आस्तीन-ए-मौज दरिया से जुदा होती नहींरब्त तेरा चश्म से क्यूँ आस्तीं जाता रहा
ख़ंदा-ए-मौज मिरी तिश्ना-लबी ने जानारेत का तपता हुआ देख के ज़र्रा कोई
अज़ाब-ए-मौज-ओ-तलातुम मुझे क़ुबूल मगरख़ुदा बचाए अज़ाब-ए-फ़रेब-ए-साहिल से
अहल-ए-बीनश को है तूफ़ान-ए-हवादिस मकतबलुत्मा-ए-मौज कम अज़ सैली-ए-उस्ताद नहीं
बार-हा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हमसूरत-ए-मौज उठे मिस्ल-ए-तलातुम आए
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'ज़िंदगी भी है मिसाल-ए-मौज-ए-दरिया राह-रौ
ये मौज मौज बनी किस की शक्ल सी 'ताबिश'ये कौन डूब के भी लहर लहर फैल गया
अब नहीं मिलेंगे हम कूचा-ए-तमन्ना मेंकूचा-ए-तमन्ना में अब नहीं मिलेंगे हम
कूचा-ए-इश्क़ में निकल आयाजिस को ख़ाना-ख़राब होना था
कितने शोरीदा-सर मोहब्बत मेंहो गए कूचा-ए-सनम की ख़ाक
खो गया कू-ए-दिलरुबा में 'निज़ाम'लोग कहते हैं मारवाड़ में है
सब्र बिन और कुछ न लो हमराहकूचा-ए-इश्क़ तंग है यारो
गया है कूचा-ए-काकुल में अब दिलमुसलमाँ वारिद-ए-हिन्दोस्ताँ है
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की यादकूचा-ए-जाँ में सदा करती है
कूचा-ए-जानाँ की मिलती थी न राहबंद कीं आँखें तो रस्ता खुल गया
कू-ए-जानाँ से अपनी साँसों परदिल की मय्यत उठा के ले आए
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचेहक़ीक़त खुल गई कू-ए-बुताँ की
कूचा-ए-ज़ुल्फ़ से टलता ही नहींदिल को सकता भी है सौदा ही नहीं
यूँ पुकारे हैं मुझे कूचा-ए-जानाँ वालेइधर आ बे अबे ओ चाक-गरेबाँ वाले
तशरीफ़ लाओ कूचा-ए-रिंदाँ में वाइज़ोसीधी सी राह तुम को बता दें नजात की
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