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शेर
दिल के पर्दों में छुपाया है तिरे इश्क़ का राज़
ख़ल्वत-ए-दिल में भी पर्दा नज़र आता है मुझे
ताजवर नजीबाबादी
शेर
तेरा ख़याल ख़्वाब ख़्वाब ख़ल्वत-ए-जाँ की आब-ओ-ताब
जिस्म-ए-जमील-ओ-नौजवाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
जौन एलिया
शेर
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
दिल-ए-महज़ूँ बहल सकता नहीं इस नक़्श-ए-बातिल से
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
ज़ाहिद क़सम है तुझ को जो तू हो तो क्या करे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
ख़ालिद मोईन
शेर
या-रब कभी वो दिन हो कि ख़ल्वत में वो सनम
खुलवाए अपने बंद-ए-क़बा मेरे हाथ से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
है आशिक़ ओ माशूक़ में ये फ़र्क़ कि महबूब
तस्वीर-ए-तफ़र्रुज है वो पुतला है अलम का
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
हिसार-ए-ग़ैर में रहता है ये मकान-ए-वजूद
मैं ख़ल्वतों में भी अक्सर अज़ाब देखता हूँ