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शेर
मैं फ़क़त इंसान हूँ हिन्दू मुसलमाँ कुछ नहीं
मेरे दिल के दर्द में तफ़रीक़-ए-ईमाँ कुछ नहीं
आनंद नारायण मुल्ला
शेर
क़ुल्ज़ुम-ए-फ़िक्र में है कश्ती-ए-ईमाँ सालिम
ना-ख़ुदा हुस्न है और इश्क़ है लंगर अपना
साहिर देहल्वी
शेर
मो'जिज़ा हज़रत-ए-ईसा का था बे-शुबह दुरुस्त
कि मैं दुनिया से गया उठ जो कहा क़ुम मुझ को
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
देखा ज़ाहिद ने जो उस रू-ए-किताबी को तो बस
वरक़-ए-कुफ़्र लिया दफ़्तर-ए-ईमान को फाड़
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
ख़ामा-ए-क़ुदरत ने दिल का नाम ये कह कर लिखा
हर जगह इस लफ़्ज़ के मअ'नी बदलते जाएँगे