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शेर
खुल गया अब ये कि वस्ल उस का ख़याल-ए-ख़ाम है
आज उम्मीदों का दिल ही दिल में क़त्ल-ए-आम है
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
शेर
नियाज़-ए-बे-ख़ुदी बेहतर नमाज़-ए-ख़ुद-नुमाई सीं
न कर हम पुख़्ता-मग़्ज़ों सीं ख़याल-ए-ख़ाम ऐ वाइ'ज़
सिराज औरंगाबादी
शेर
दर्द-ए-सर है तेरी सब पंद-ओ-नसीहत नासेह
छोड़ दे मुझ को ख़ुदा पर न कर अब सर ख़ाली