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शेर
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
किसी दिन उस को ताज-ओ-तख़्त से महरूम कर देखूँ
सरवत हुसैन
शेर
लोगो हम तो एक ही सूरत में हथियार उठाते हैं
जब दुश्मन हो अपने जैसा ख़ुद-सर भी और हम-सर भी
अज़हर अदीब
शेर
सब की तक़रीरों में वैसे है ख़ुदा सब का ही इक
हाँ मगर हर दिल की अपनी मज़हबी पोशाक है
ए.आर.साहिल "अलीग"
शेर
डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
सुब्ह कूँ खोला न कर इस ज़ुल्फ़-ए-ख़ून-आशाम कूँ
आबरू शाह मुबारक
शेर
ख़ुद अपने क़त्ल का इल्ज़ाम ढो रहा हूँ अभी
मैं अपनी लाश पे सर रख के रो रहा हूँ अभी