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शेर
न ख़ौफ़-ए-बर्क़ न ख़ौफ़-ए-शरर लगे है मुझे
ख़ुद अपने बाग़ को फूलों से डर लगे है मुझे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
शेर
जो बिजलियों की पनाहों में तुम बना सकते
तो इस क़दर न तुम्हें ख़ौफ़-ए-आशियाँ होता
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
शेर
नहीं मिलती उन्हें मंज़िल जिन्हें ख़ौफ़-ए-हवादिस है
जो मौजों से नहीं डरते नदी को पार करते हैं
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
शेर
आँखों आँखों में पिला दी मिरे साक़ी ने मुझे
ख़ौफ़-ए-ज़िल्लत है न अंदेशा-ए-रुस्वाई है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
रोज़ी-रसाँ ख़ुदा है फ़िक्र-ए-मआश मत कर
इस ख़ार का तू दिल में ख़ौफ-ए-ख़राश मत कर
मीर मोहम्मदी बेदार
शेर
क्यूँ हर घड़ी ज़बाँ पे हो जुर्म-ओ-सज़ा का ज़िक्र
क्यूँ हर अमल की फ़िक्र में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा की शर्त