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शेर
वामिक़ जौनपुरी
शेर
किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी किसी के बाल-ओ-पर टूटे
जली शाख़ों पे यूँ लटके कबूतर देख आया हूँ
अता आबिदी
शेर
निगाह-ए-शौक़ से लाखों बना डाले हैं दर हम ने
क़फ़स में भी नहीं मानी शिकस्त-ए-बाल-ओ-पर हम ने
सालिक लखनवी
शेर
असीर कर के हमें हुक्म दे गया सय्याद
क़फ़स हो तंग तो उन के न बाल-ओ-पर रखना
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
तुम्हारे संग ही मुझ को मिली परवाज़ की हिम्मत
तुम्हारे हौसले को मैं ने अपने बाल-ओ-पर समझा
इरुम ज़ेहरा
शेर
हम में और परिंदों में फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है
दस्त-ओ-पा मिले हम को बाल-ओ-पर परिंदों को
मुस्तफ़ा शहाब
शेर
वो शबनम का सुकूँ हो या कि परवाने की बेताबी
अगर उड़ने की धुन होगी तो होंगे बाल-ओ-पर पैदा
इक़बाल सुहैल
शेर
अदा-ए-हुस्न ने बख़्शी है ताक़त-ए-परवाज़
हवा-ए-शौक़ में उड़ता हूँ बाल-ओ-पर न सही
मसलिहुद्दी अहमद असीर काकोरवी
शेर
मिलेगा ज़ुल्फ़-ए-आज़ादी उन्हें क्या मौसम-ए-गुल में
क़फ़स से छूट कर गुलशन में जो बे-बाल-ओ-पर आए