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शेर
जैसे रेल की हर खिड़की की अपनी अपनी दुनिया है
कुछ मंज़र तो बन नहीं पाते कुछ पीछे रह जाते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
शेर
बहुत दुश्वार है जीना किसी भी बंद कमरे में
अगर हो बंद दरवाज़ा तो खिड़की खोल कर रखना