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शेर
तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं
फ़रहत एहसास
शेर
हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर
पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर
अखिलेश तिवारी
शेर
उन का दरवाज़ा था मुझ से भी सिवा मुश्ताक़-ए-दीद
मैं ने बाहर खोलना चाहा तो वो अंदर खुला