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शेर
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
शेर
इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
तंग आ गए हैं गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से हम
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
शेर
है इन दिनों में गर्दिश-ए-चश्म-ए-बुताँ का दौर
तेरा ज़माना गर्दिश-ए-दौराँ निकल गया
क़ुर्बान अली सालिक बेग
शेर
'बशीर' अब गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर की याद बाक़ी है
कहाँ तक साथ दे सकते ज़मीन-ओ-आसमाँ अपना