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शेर
क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ
ठंडे ठंडे दीदनी है गर्मी-ए-बाज़ार-ए-सुब्ह
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो
मर गया हूँ मैं तुम्हारी गरमी-ए-रफ़्तार पर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
शेर
हर किताब-ए-सोहबत-ए-रंगीं के मअ'नी देख कर
फ़र्द-ए-तन्हाई के मज़मूँ कूँ किया हूँ इंतिख़ाब
मिर्ज़ा दाऊद बेग
शेर
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
जिंस तो है पे ज़ुलेख़ा सा ख़रीदार कहाँ