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शेर
दिल-ए-ग़म-गीं की कुछ महवीय्यतें ऐसी भी होती हैं
कि तेरी याद का आना भी ऐसे में खटकता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ये सानेहे दिल-ए-ग़म-गीं हुआ ही करते हैं
न इश्क़ ही की ख़ता है न हुस्न ही का क़ुसूर
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
किया बदनाम इक आलम ने 'ग़मगीं' पाक-बाज़ी में
जो मैं तेरी तरह से बद-नज़र होता तो क्या होता
ग़मगीन देहलवी
शेर
कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं
कुछ तल्ख़ी-ए-हालात का एहसास हुआ है
नसीम शाहजहाँपुरी
शेर
जाम ले कर मुझ से वो कहता है अपने मुँह को फेर
रू-ब-रू यूँ तेरे मय पीने से शरमाते हैं हम
ग़मगीन देहलवी
शेर
हर जंगल की एक कहानी वो ही भेंट वही क़ुर्बानी
गूँगी बहरी सारी भेड़ें चरवाहों की जागीरें हैं