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शेर
ये ज़माना वो है जिस में हैं बुज़ुर्ग ओ ख़ुर्द जितने
उन्हें फ़र्ज़ हो गया है गिला-ए-हयात करना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
रोज़-ए-जज़ा गिला तो क्या शुक्र-ए-सितम ही बन पड़ा
हाए कि दिल के दर्द ने दर्द को दिल बना दिया
फ़ानी बदायुनी
शेर
वक़्त-ए-पीरी दोस्तों की बे-रुख़ी का क्या गिला
बच के चलते हैं सभी गिरती हुई दीवार से
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
करता है ऐ 'असर' दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता का गिला
आशिक़ वो क्या कि ख़स्ता-ए-तेग़-ए-जफ़ा न हो
इम्दाद इमाम असर
शेर
गिला किस से करें अग़्यार-ए-दिल-आज़ार कितने हैं
हमें मालूम है अहबाब भी ग़म-ख़्वार कितने हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
शेर
बे-इल्म शाइरों का गिला क्या है ऐ 'मुनीर'
है अहल-ए-इल्म को तिरा तर्ज़-ए-बयाँ पसंद