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शेर
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
तंग इतना है कि गुंजाइश-ए-ता'मीर नहीं
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
जिस कू में हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द
वो कूचा क्यूँके रू-कश-ए-चीन-ओ-चगिल न हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ख़ालिद हसन क़ादिरी
शेर
यार की फ़र्त-ए-नज़ाकत का हूँ मैं शुक्र-गुज़ार
ध्यान भी उस का मिरे दिल से निकलने न दिया
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
लोगों का एहसान है मुझ पर और तिरा मैं शुक्र-गुज़ार
तीर-ए-नज़र से तुम ने मारा लाश उठाई लोगों ने