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शेर
मिरी इस चश्म-ए-तर से अब्र-ए-बाराँ को है क्या निस्बत
कि वो दरिया का पानी और ये ख़ून-ए-दिल है बरसाती
नज़ीर अकबराबादी
शेर
ख़ुद मिरे आँसू चमक रखते हैं गौहर की तरह
मेरी चश्म-ए-आरज़ू में माह-ओ-अख़तर कुछ नहीं
महफूजुर्रहमान आदिल
शेर
ये ज़ख़्म-ए-अना काफ़ी है ऐ यूसुफ़-ए-दौराँ
इस चश्म-ए-ज़ुलेख़ा को तू ग़मनाक न करना
बहारुन्निसा बहार
शेर
है चश्म नीम-बाज़ अजब ख़्वाब-ए-नाज़ है
फ़ित्ना तो सो रहा है दर-ए-फ़ित्ना बाज़ है