aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "चश्म-ए-मस्त-ए-यार"
जिस ने चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी देख लीता क़यामत उस पे हुश्यारी हराम
चश्म-ए-मस्त उस की याद आने लगीफिर ज़बाँ मेरी लड़खड़ाने लगी
साक़ी हमें क़सम है तिरी चश्म-ए-मस्त कीतुझ बिन जो ख़्वाब में भी पिएँ मय हराम हो
बिखरी हुई हो ज़ुल्फ़ भी इस चश्म-ए-मस्त परहल्का सा अब्र भी सर-ए-मय-ख़ाना चाहिए
डोरे नहीं हैं सुर्ख़ तिरी चश्म-ए-मस्त मेंशायद चढ़ा है ख़ून किसी बे-गुनाह का
इस चश्म-ए-सियह-मस्त पे गेसू हैं परेशाँमय-ख़ाने पे घनघोर घटा खेल रही है
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरीजज़्बा टकरा दे न पैमाने से पैमाने को
मस्त हाथी है तिरी चश्म-ए-सियह-मस्त ऐ यारसफ़-ए-मिज़्गाँ उसे घेरे हुए है भालों से
लहू ही कितना है जो चश्म-ए-तर से निकलेगायहाँ भी काम न अर्ज़-ए-हुनर से निकलेगा
तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँईजाद होगी नर्गिस-ए-बीमार की जगह
पा-बोस-ए-यार की हमें हसरत है ऐ नसीमआहिस्ता आइओ तू हमारे मज़ार पर
ऐ चश्म-ए-यार मौत का पहलू बचा के तूऐसी निगाह डाल कि मैं नीम-जाँ रहूँ
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँहर इक को है गुमाँ कि मुख़ातब हमीं रहे
मुमकिन है अश्क बन के रहूँ चश्म-ए-यार मेंमुमकिन है भूल जाए ग़म-ए-रोज़गार में
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होताअगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
घर-ब-घर है वो मस्त-ए-इश्वा-ओ-नाज़दर-ब-दर हम ख़राब होते हैं
उट्ठी है चश्म-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना बज़्म परये वक़्त वो नहीं कि हलाल-ओ-हराम देख
नहीं इलाज-ए-ग़म-ए-हिज्र-ए-यार क्या कीजेतड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार किया कीजे
मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचानेजो तुझ को देख के आए वो हम को पहचाने
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुँदला किया हैमैं ने ख़ुद को जान कर तन्हा किया है
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