aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "चार-सू"
धज्जियाँ उड़ने लगीं इंसानियत की चार-सूदिल दरिंदा हो गया इंसान पथरीले हुए
सजा कर चार-सू रंगीं महल तेरे ख़यालों केतिरी यादों की रानाई में ज़ेबाई में जीते हैं
चार-सू आतिश-ज़नी कोहराम कर्फ़्यू लूट मारफ़ित्ना-ओ-शर दौर-ए-हाज़िर का मुक़द्दर बन गया
इश्क़ वो चार सू सफ़र है जहाँकोई भी रास्ता नहीं रुकता
नहीं हैं बोलने वाले जो चार सू अपनेहमारे कानों में ये शोर क्यूँ भरा हुआ है
वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सूमैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
किस की सदा फ़ज़ाओं में गूँजी है चार-सूकिस ने मुझे पुकारा है बचपन के नाम से
चार-सू फैला है अब तो एक बस फ़ुर्क़त का रंगअब तलक यक-रंग तस्वीर-ए-जहाँ ऐसी न थी
फिर के निगाह चार-सू ठहरी उसी के रू-ब-रूउस ने तो मेरी चश्म को क़िबला-नुमा बना दिया
हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर कासब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो
बोलते हैं दिलों के सन्नाटेशोर सा ये जो चार-सू है अभी
आप ही मरकज़-ए-निगाह रहेजाने को चार-सू निगाह गई
हिज्र में मुज़्तरिब सा हो हो केचार-सू देखता हूँ रो रो के
चाँद तारे इक दिया और रात का कोमल बदनसुब्ह-दम बिखरे पड़े थे चार सू मेरी तरह
तिरे ख़याल के पहलू से उठ के जब देखामहक रहा था ज़माने में चार-सू तिरा ग़म
मुर्दा पड़े थे लोग घरों की पनाह मेंदरिया वफ़ूर-ए-ग़ैज़ से बिफरा था चार सू
ख़्वाहिश से कब है तेरी तलब आरज़ू से हैइक सम्त से नहीं ये ग़ज़ब चार-सू से है
ये भी ख़ुद को हौसला देने का हीला है कि मैंउँगलियों से लिख रहा हूँ चार सू ला-तक़्नतू
इक जनम के प्यासे भी सैर हों तो हम जानेंयूँ तो रहमत-ए-यज़्दाँ चार-सू बरसती है
वहशत नहीं है रक़्स-ए-मसर्रत है दश्त मेंपेड़ों की शक्ल में ये मिरे चार-सू हो तुम
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