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शेर
धरती और अम्बर पर दोनों क्या रानाई बाँट रहे थे
फूल खिला था तन्हा तन्हा चाँद उगा था तन्हा तन्हा
ज्ञान चंद जैन
शेर
सहर के साथ होगा चाक मेरा दामन-ए-हस्ती
ब-रंग-ए-शम्अ बज़्म-ए-दहर में मेहमाँ हूँ शब भर का
ताैफ़ीक़ हैदराबादी
शेर
मिरे बुत-ख़ाने से हो कर चला जा काबे को ज़ाहिद
ब-ज़ाहिर फ़र्क़ है बातिन में दोनों एक रस्ते हैं
हफ़ीज़ जौनपुरी
शेर
इन दिनों शहर से जी सख़्त ब-तंग आया है
ले चल ऐ जोश-ए-जुनूँ सू-ए-बयाबाँ मुझ को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
कि तेरे आगे मिरी कुछ न चल सकी तदबीर