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शेर
गुमाँ न क्यूँकि करूँ तुझ पे दिल चुराने का
झुका के आँख सबब क्या है मुस्कुराने का
ममनून निज़ामुद्दीन
शेर
चुराने को चुरा लाया मैं जल्वे रू-ए-रौशन से
मगर अब बिजलियाँ लिपटी हुई हैं दिल के दामन से
इज्तिबा रिज़वी
शेर
लगे मुँह भी चिढ़ाने देते देते गालियाँ साहब
ज़बाँ बिगड़ी तो बिगड़ी थी ख़बर लीजे दहन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
शेर
इस अँधेरे में चराग़-ए-ख़्वाब की ख़्वाहिश नहीं
ये भी क्या कम है कि थोड़ी देर सो जाता हूँ मैं