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शेर
बहार आते ही टकराने लगे क्यूँ साग़र ओ मीना
बता ऐ पीर-ए-मय-ख़ाना ये मय-ख़ानों पे क्या गुज़री
जगन्नाथ आज़ाद
शेर
जलवा-ए-रुख़सार-ए-साक़ी साग़र-ओ-मीना में है
चाँद ऊपर है मगर डूबा हुआ दरिया में है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया
अब्दुल हमीद अदम
शेर
हमारे पास कोई गर्दिश-ए-दौराँ नहीं आती
हम अपनी उम्र-ए-फ़ानी साग़र-ओ-मीना में रखते हैं
ज़हीर काश्मीरी
शेर
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
जल्वा-ए-यार देख कर तूर पे ग़श हुए कलीम
अक़्ल-ओ-ख़िरद का काम क्या महफ़िल-ए-हुस्न-ओ-नाज़ में
अनवर सहारनपुरी
शेर
साक़िया हिज्र में कब है हवस-ए-गुफ़्त-ओ-शुनीद
साग़र-ए-गोश से मीना-ए-ज़बाँ दूर रहे