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शेर
है कारवान-ए-क़ुदसी-ए-हर्फ़-ए-अज़ल रवाँ
हर जेहल-ओ-ज़ुल्म-ओ-ज़ुल्मत-ओ-ज़ेर-ओ-ज़बर के साथ
अख़लाक़ अहमद आहन
शेर
आए थे क्यूँ अदम से क्या कर चले जहाँ में
ये मर्ग-ओ-ज़ीस्त दोनों आपस में हस्तियाँ हैं
मीर फ़तेह अली शैदा
शेर
महक में ज़हर की इक लहर भी ख़्वाबीदा रहती है
ज़िदें आपस में टकराती हैं फ़र्क़-ए-मार-ओ-संदल कर
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ
यार और जाम-ओ-सुबू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
जोर्ज पेश शोर
शेर
नाहीद ओ क़मर ने रातों के अहवाल को रौशन कर तो दिया
वो दीप किसी से जल न सके जो दिल में उजाला करते हैं
निसार इटावी
शेर
नई सहर के हसीन सूरज तुझे ग़रीबों से वास्ता क्या
जहाँ उजाला है सीम-ओ-ज़र का वहीं तिरी रौशनी मिलेगी
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
शेर
ढूँढता फिरता है मुझ को क्यूँ फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू
मैं वहाँ हूँ ख़ुद जहाँ अपना पता मिलता नहीं