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शेर
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
पछताए हम इस शाम-ए-ग़रीबाँ से निकल कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
इक न इक ज़ुल्मत से जब वाबस्ता रहना है तो 'जोश'
ज़िंदगी पर साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ क्यूँ न हो
जोश मलीहाबादी
शेर
अफ़्साना-गो को याद नहीं ख़त्म-ए-दास्ताँ
छेड़ी है उस ने ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन की बात
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
मैं वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म हूँ जो सँवर गई हवा से
परवेज़ शाहिदी
शेर
रहने दे ज़िक्र-ए-ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को नदीम
उस के तो ध्यान से भी होता है दिल को उलझाओ
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
सब मुनज्जम कहते हैं अब है बराबर रात दिन
सर से पा तक देख कर ज़ुल्फ़-ए-दराज़-ए-यार को
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
न मिज़ाज-ए-नाज़-ए-जल्वा कभी पा सकीं निगाहें
कि उलझ के रह गई हैं तिरी ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म में
अख़्तर ओरेनवी
शेर
दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
हम न शाना न सबा हैं नहीं खुलता है ये भेद
ऐंठती जाती है क्यूँ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ हम से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
कुछ अब के हम भी कहें उस की दास्तान-ए-विसाल
मगर वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ खुले तो बात चले
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
नाचार है दिल ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के आगे
दीवाने का क्या चलता है ज़ंजीर के आगे
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ
गर उलझ जाए ख़रीदार ख़रीदार के साथ