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शेर
ये अदा हुई कि जफ़ा हुई ये करम हुआ कि सज़ा हुई
उसे शौक़-ए-दीद अता किया जो निगह की ताब न ला सके
जोश मलसियानी
शेर
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर
शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
मत मुँह से 'निसार' अपने को ऐ जान बुरा कह
है साहब-ए-ग़ैरत कहीं कुछ खा के न मर जाए