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शेर
रफ़्ता रफ़्ता वो हमारे दिल के अरमाँ हो गए
पहले जाँ फिर जान-ए-जाँ फिर जान-ए-जानाँ हो गए
तस्लीम फ़ाज़ली
शेर
इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे