aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "जामा-ए-तार-तार"
मुझे तो रंज क़बा-हा-ए-तार-तार का हैख़िज़ाँ से बढ़ के गुलों पर सितम बहार का है
फिर सी रहा हूँ पैरहन-ए-तार-तार कोफिर दाग़-बेल डाल रहा हूँ बहार की
अंदर का ज़हर-नाक अँधेरा ही था बहुतसर पर तुली खड़ी है शब-ए-तार किस लिए
पाया तबीब ने जो तिरी ज़ुल्फ़ का मरीज़शामिल दवा में मुश्क-ए-शब-ए-तार कर दिया
सारी शफ़क़ समेट के सूरज चला गयाअब क्या रहा है मौज-ए-शब-ए-तार के सिवा
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आयादिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रियाद आया
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा हैज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अंधेरा है
अश्क जब दीदा-ए-तर से निकलाएक काँटा सा जिगर से निकला
यादें चलें ख़याल चला अश्क-ए-तर चलेले कर पयाम-ए-शौक़ कई नामा-बर चले
वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता हैअजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
मुसलसल एक ही तस्वीर चश्म-ए-तर में रहीचराग़ बुझ भी गया रौशनी सफ़र में रही
जिधर को मिरी चश्म-ए-तर जाएगीउधर काम दरिया का कर जाएगी
नज़र किसी को वो मू-ए-कमर नहीं आताब-रंग-ए-तार-ए-नज़र है नज़र नहीं आता
देखना ग़ाफ़िल न रहना चश्म-ए-तर से देखनाआइना जब देखना मेरी नज़र से देखना
दिल के ज़ख़्मों की चुभन दीदा-ए-तर से पूछोमेरे अश्कों का है क्या मोल गुहर से पूछा
दुनिया में मिस्ल-ए-ताज निहायत हसीं था वोलेकिन वफ़ा का रंग उतरने से पेशतर
इतने आँसू तो न थे दीदा-ए-तर के आगेअब तो पानी ही भरा रहता है घर के आगे
हम जाम-ए-मय के भी लब-ए-तर चूसते नहींचसका पड़ा हुआ है तुम्हारी ज़बान का
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मिरा चेहरा हैसंग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे
शजर-ए-तर न यहाँ बर्ग-ए-शनासा कोईइस क़रीने से सजाया है ये मंज़र किस ने
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